tag:blogger.com,1999:blog-5572870054500788718.post1795484102091160570..comments2023-10-16T20:44:25.055+05:30Comments on नासमझ की बात: हमारे अन्दर का रावणishwar khandeliyahttp://www.blogger.com/profile/01408727603986293583noreply@blogger.comBlogger9125tag:blogger.com,1999:blog-5572870054500788718.post-49459503837623127182010-10-31T20:21:58.219+05:302010-10-31T20:21:58.219+05:30बहुत ही सुन्दर विचार बधाईबहुत ही सुन्दर विचार बधाईAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/01888430668251932401noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5572870054500788718.post-61084795993852206262010-10-26T17:41:13.791+05:302010-10-26T17:41:13.791+05:30आप के इस सुंदर लेख से सहमत हे जी, हमे अपने अंदर की...आप के इस सुंदर लेख से सहमत हे जी, हमे अपने अंदर की बुराईयो रुपी रावण को पहले मारना चाहिये. धन्यवादराज भाटिय़ाhttps://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5572870054500788718.post-57801294030130976682010-10-25T21:34:39.359+05:302010-10-25T21:34:39.359+05:30pपूजा भी आज कल दिखावे की रह गयी है। राम का नाम जपत...pपूजा भी आज कल दिखावे की रह गयी है। राम का नाम जपते हैं मगर राम का आचरण नही जीवन मे उतारते। अगर रामायण के रावण की बात करें तो शायद वो आज के इन्सान से कई गुणा बेहतर था। बहुत अच्छा लिखा है आपने आज जरूरत है अपने अन्दर बैठे रावण को मारने की। सार्थक आलेख। धन्यवाद।निर्मला कपिलाhttps://www.blogger.com/profile/11155122415530356473noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5572870054500788718.post-71151783755529780572010-10-23T22:10:17.685+05:302010-10-23T22:10:17.685+05:30... saarthak abhivyakti !!!... saarthak abhivyakti !!!कडुवासचhttps://www.blogger.com/profile/04229134308922311914noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5572870054500788718.post-82946758776511131142010-10-22T14:10:27.897+05:302010-10-22T14:10:27.897+05:30,मेने तुम्हारी सब रचनाएँ पढ़ीं अच्छी लगीं ,रावन का...,मेने तुम्हारी सब रचनाएँ पढ़ीं अच्छी लगीं ,रावन का क्या हर दिल में ,हर घर में गहरे समाया हुआ है नासमझी तो है बाहर उसका पुतला जलाना मगर हमने परंपरा बना रक्खी है में जहाँ तक समझती हूँ काम ,क्रोध ,लोभ ,मोह अहंकार भय राग ,द्वेष छल आलस्य ये दस सर हें रावण के .क्या हम इन पर विजय पा सकते हें ?हाँ मगर एक एक करके क्यों की सब को एक साथ मारना संभव नहीं ;परप्रश्न फिर वहीँ का वहीँ की पहल कौन करे ?<br /><br />रहते हमारे पास तो टूटते जरूर <br />अच्छा हुआ जो आपने सपने चुरा लिए <br /><br />देवकी खान्देलियाAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/06682065882851886995noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5572870054500788718.post-89554204227157876032010-10-20T14:52:56.335+05:302010-10-20T14:52:56.335+05:30thoughtful attempt to describ the modern mentality...thoughtful attempt to describ the modern mentality to ignore the inner voice.Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5572870054500788718.post-18008783146643792010-10-17T10:21:14.136+05:302010-10-17T10:21:14.136+05:30बहुत सुन्दर प्रस्तुति आपको विजय दशमी की शुभकामनाएं...बहुत सुन्दर प्रस्तुति आपको विजय दशमी की शुभकामनाएंSurendra Singh Bhamboohttps://www.blogger.com/profile/11382942026842555156noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5572870054500788718.post-21478340310794545172010-10-15T21:35:10.087+05:302010-10-15T21:35:10.087+05:30गंभीर और प्रासंगिक चिंतन, बधाई एवं शुभकामनाएं.गंभीर और प्रासंगिक चिंतन, बधाई एवं शुभकामनाएं.Rahul Singhhttps://www.blogger.com/profile/16364670995288781667noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5572870054500788718.post-49340931956289338622010-10-15T20:24:15.619+05:302010-10-15T20:24:15.619+05:30.
आजकल रावण भी ज्यादा हो गए हैं, और अन्दर छुपे हु....<br /><br />आजकल रावण भी ज्यादा हो गए हैं, और अन्दर छुपे हुए रावण की तो बात ही क्या है। बहुत विरले ही होते हैं जो अपने अन्दर के रावण को मार पाते हैं । अब पहले वाली भावुकता और संवेदनशीलता कहाँ ? जिसे देखो वही अगले को धक्का मार कर आगे बढ़ना चाहता है।<br /><br />महज दिन रात पूजा करने से कुछ नहीं होता। जब तक मन में पवित्रता नहीं होगी, व्यवहार और आचरण सराहनीय नहीं हो सकेगा।<br /><br />सुन्दर, विचारणीय पोस्ट । <br /><br />.ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.com