tag:blogger.com,1999:blog-5572870054500788718.post6415789814208076168..comments2023-10-16T20:44:25.055+05:30Comments on नासमझ की बात: पुस्तकालयों की स्थापनाishwar khandeliyahttp://www.blogger.com/profile/01408727603986293583noreply@blogger.comBlogger13125tag:blogger.com,1999:blog-5572870054500788718.post-35761984016227929092013-06-07T12:31:57.864+05:302013-06-07T12:31:57.864+05:30मुझे लगता है आप सभी की बाते बिलकुल सही है पर क्या ...मुझे लगता है आप सभी की बाते बिलकुल सही है पर क्या आपने गौर से इसके कारणो के विषय मे जानने की कोशिश की मुझे लगता है की इसमे हमारी ही गलती है हम ही इसके जिम्मेदार है अगर हमने अपने अंदर पुस्तकों को लेकर सकारात्मक रुख़ अपना लिया तो निश्चित रूप से इस सं<br /> Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5572870054500788718.post-51525024267603666822011-03-11T18:43:27.662+05:302011-03-11T18:43:27.662+05:30पुस्तक पढ़ने और पुस्तकालय को बढ़ावा देने के लिए ...पुस्तक पढ़ने और पुस्तकालय को बढ़ावा देने के लिए कई संस्थाएं काम काम रही हैं। उनका असर भी हो रहा है। लगभग तीन साल पहले मैंने राज्यशिक्षा संस्थान मप्र के लिए एक किताब का संपादन किया था जिसमें बच्चों को किताबों की ओर आकर्षित करने के लिए गतिविधियां दी गईं हैं। किताब का नाम है- किताबों की किताब।राजेश उत्साहीhttps://www.blogger.com/profile/15973091178517874144noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5572870054500788718.post-33409799033197300722011-03-06T18:55:17.728+05:302011-03-06T18:55:17.728+05:30उचित बात कह रहे हैं आप. विचारणीय.उचित बात कह रहे हैं आप. विचारणीय.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5572870054500788718.post-52962498827491876352011-03-06T10:17:08.172+05:302011-03-06T10:17:08.172+05:30सबसे पहले पढ़ने की आदत और पुस्तकों से प्रेम पर आपक...सबसे पहले पढ़ने की आदत और पुस्तकों से प्रेम पर आपको साधुवाद ! यह महत्वपूर्ण है कि इस सृजनात्मक / सकारात्मक अभिरुचि को राज्य का समर्थन प्राप्त हुआ है पर ... <br />मेरा व्यक्तिगत अभिमत ये है कि पुस्तकालयों को राज्य की अपेक्षा सामाजिक / पारिवारिक समर्थन की आवश्यकता अधिक है ! नागरिकों के स्वस्फूर्त यत्न होने की दशा में यह ,राजकीय अनुदान और प्रक्रियागत प्रपंचों की तुलना में अधिक कारगर / उपयोगी सिद्ध होगा ऐसा मुझे विश्वास है ! <br />आपकी पोस्ट पर टिप्पणियां पढते हुए एक बात यह भी कहना है कि जब कागज का आविष्कार नहीं हुआ था पुस्तकें तब भी थीं , शिलाओं पर , चर्म पर , ताम्र / ताड़ पत्रों पर या अन्य किन्हीं माध्यमों पर ! इसलिए आगे जब कभी कागज नहीं रहेगा , तो क्या ? पुस्तकें फिर भी रहेंगी ! नई शक्ल में , इलेक्ट्रानिक माध्यमों या शायद किसी नये स्वरूप में ! <br />अतः पुस्तकों और पुस्तकालयों की एक विशिष्ट स्थिति / शक्ल के आग्रह नहीं होने चाहिए ! समय के साथ हम बदल रहे हैं तो हमारी पुस्तकें भी बदलेंगी !<br /><br />बहरहाल एक लंबी अनुपस्थिति के बाद आप आये और एक अच्छी पोस्ट लिखी उसके लिए आपका आभार !उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5572870054500788718.post-55845231687563965252011-03-06T00:30:31.992+05:302011-03-06T00:30:31.992+05:30जी आप की बात से सहमत हुं, रुचि कम क्यो हो रही हे.....जी आप की बात से सहमत हुं, रुचि कम क्यो हो रही हे...? क्योकि पहले गह्र मे मां बाप भी बच्चो को अच्छा सहित्या पधने की प्रेरणा देते थे ओर स्कुल मे भी टीचर अच्छी किताबे ही पढने को कहते थे.... ओर आज ना वो मां बाप हे, ना ही वो मास्टर ओर ना ही वो बच्चे, यानि सब चोपट होता जा रहा हे, बच्चो को प्यार से ही समय नही मिलता तो क्या पुस्तके पढे.....राज भाटिय़ाhttps://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5572870054500788718.post-18123672523499783922011-03-05T17:43:48.057+05:302011-03-05T17:43:48.057+05:30यह तो सत्य है पढने की प्रवृत्ति लगातार कम होते जा...यह तो सत्य है पढने की प्रवृत्ति लगातार कम होते जा रही है <br />आप का ब्लॉग लेख पड़ा तो मुझे गारमेन्ट स्कुल बिलासपुर के हमारे गुरु आदरणीय चौहान साहब की याद आ गई . वो हमेशा अच्छी अच्छी पुस्तके पड़ने के लिए कहते थे .और क्यों यह भी समझाया करते थे अंग्रेजी तो हमने चौहान साहब से कम पढ़ी है पर जीवन को देखने के नजरिये को खूब सुना पढ़ा पर व्यवहारिक जीवन में उतरा नहीं ..<br />शायद हमने भी पुस्तकों को महत्व नहीं दिया और अखबारों की खबरों में मग्न रहे <br />कन्देलिया जी शानदार पोस्ट ..आप के विचारो से सहमत हूँbilaspur property markethttps://www.blogger.com/profile/15772656267596123443noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5572870054500788718.post-91831614571489708432011-03-05T14:43:36.328+05:302011-03-05T14:43:36.328+05:30हर नगर में सार्वजनिक पुस्तकालय हों।हर नगर में सार्वजनिक पुस्तकालय हों।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5572870054500788718.post-84343713794501666122011-03-05T06:06:38.011+05:302011-03-05T06:06:38.011+05:30विद्यार्थियों में वास्तव में पढने की आदत होनी चाहि...विद्यार्थियों में वास्तव में पढने की आदत होनी चाहिए । स्कूलों में library होती है , जिसे और विस्तार दिया जाना चाहिए । हर तरह की पुस्तकें उबलब्ध होनी चाहिए , जिससे लोगों की रूचि उसमें बढ़ सके ।ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5572870054500788718.post-25749312218904755732011-03-05T06:05:33.315+05:302011-03-05T06:05:33.315+05:30पाठक ही पुस्तकालय की प्राणधारा हैं, जो उसे प्रासं...पाठक ही पुस्तकालय की प्राणधारा हैं, जो उसे प्रासंगिक बनाए रखते हैं. <br />अकलतरा स्कूल की प्रतिभाओं को निखारने में यह पुस्तकालय महत्वपूर्ण रहा है. <br />आपने बजट के इस कम चर्चित लेकिन उल्लेखनीय पक्ष की ओर ध्यान दिलाया है.Rahul Singhhttps://www.blogger.com/profile/16364670995288781667noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5572870054500788718.post-21648982182797912862011-03-05T00:21:13.792+05:302011-03-05T00:21:13.792+05:30आपकी बात से पूरी तरह सहमत हूँ..... पुस्तकालय बहुत...आपकी बात से पूरी तरह सहमत हूँ..... पुस्तकालय बहुत ज़रूरी हैं..... किताबें हमारे जीवन का हिस्सा हो इससे अच्छा क्या हो सकता है..... डॉ. मोनिका शर्मा https://www.blogger.com/profile/02358462052477907071noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5572870054500788718.post-25492381649987647632011-03-04T23:05:04.267+05:302011-03-04T23:05:04.267+05:30बात तो चो्खी है आपकी।
पुस्तकालय के साथ पठन की रुच...बात तो चो्खी है आपकी। <br />पुस्तकालय के साथ पठन की रुची भी होनी चाहिए। सरकार जिन को राशि दे रही है पुस्तक खरीदने के लिए,उन्हे ही नहीं पता कौन सी पुस्तक खरीदनी चाहिए? <br /><br />अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर।<br />सार्थक आले्ख के लिए आभार।ब्लॉ.ललित शर्माhttps://www.blogger.com/profile/09784276654633707541noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5572870054500788718.post-19287317467570216542011-03-04T22:45:19.157+05:302011-03-04T22:45:19.157+05:30mobile, Internet aur tv ne pustsko va pustkalyon k...mobile, Internet aur tv ne pustsko va pustkalyon ko chhatro aur yuvaon ko jis kadar prabhavit kiya hai usse chinta hoti hai. aise mein pustakalyon ke vikas ki baat utsah badane vali hai. alag se is khabar ko apne blog mein post karke is oor logon ka dhyan dilane ke liye dhanyavad. Dr Mandhata Singhhttps://www.blogger.com/profile/05562848365103091157noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5572870054500788718.post-86562889246442467952011-03-04T22:16:58.776+05:302011-03-04T22:16:58.776+05:30smt veena se mail par prapt pratikriya
हां यह सच ...smt veena se mail par prapt pratikriya <br />हां यह सच है आज लोग किताबों और पढ़ने की आदत से दूर होते जा रहे हैं.....जीवन की गतिशीलता भी इतनी बढ़ गई है जो चाहते हैं वह भी समय नहीं निकाल पाते..वैसे जिनको निकालना होता है वह समय निकालकर पढ़ते ही हैं यह आदत जिनको है वही इसका मूल्य भी जानते हैं...<br />बहुत अच्छा लिखा है....बधाईishwar khandeliyahttps://www.blogger.com/profile/01408727603986293583noreply@blogger.com