न जाने क्या पाने को जी चाहता है
तेरी रहमत का है ये भी एक दौर मालिक
कि सब कुछ भुलाने को जी चाहता है
तूनें तो बख्सी दुनिया की सारी नियामतें मुझे
पर तुझी से मुंह छुपाने को दिल चाहता है
है कौन इस जहाँ में जिस मिला हो शकू
ये जानते हुए भी शकुन पाने को जी चाहता है
किस्मत की लिखी जिसे लोग कहतें हैं
उसे अपनी हिम्मत से मिटने को जी चाहता है
सब जानकर भी गुनाह पर गुनाह किये जा रहा हूँ
अब तुझसे भी गुनाह छिपाने को जी चाहता है
जनता हूँ नहीं तुझसे कुछ भी मांगने के काबिल मैं
फिर भी मांगने की हिम्मत जुटाने को जी चाहता है
यही फितरत होती है सबकी.
जवाब देंहटाएंनहीं ज्ञात है, क्या पाना है ।
जवाब देंहटाएंसच है, जानते हुए भी इंसान गुनाह करता है...
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारा गीत . . .
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