इतना वरदान ही हमें देना हे विघ्नहर्ता
एक बार फिर गणेसोत्सव आया और अब जाने को है गणेसोत्सव के साथ मेरे मन में मेरे नगर की बहुत सी यादें जुडी है नगर में एक दो जगह ही गणेश स्थापना हुआ करती थी और पुरे दस दिन नगर में उत्सव का माहौल रहा करता था उस समय हर व्यक्ति अपनी सामर्थ्य के हिसाब से इस हेतु चंदा दिया करता था कालांतर में कई जगहों पर गणेश स्थापना की जाने लगी और धीरे धीरे नगर में उत्सव का वह माहौल समाप्त हो गया गणेश स्थापना लगभग रश्म अदायगी होने लगी.
इस साल कल ही जब एक जगह मै गणेश पूजन के समय पहुँच गया तब पूजन के बाद एक बुजुर्ग ने चर्चा में एक ऐसा सवाल उठा दिया कि वहां उपस्थित हममें से कुछ लोग उस बात पर चिंतन के लिए मजबूर हो गए.
हुआ यूँ कि उन बुजुर्ग का कहना था कि वे अपने बेटे को घर लेजाने आए हैं जो यहाँ पूजा में लगा हुआ है एवं घर पर उसकी माता की तबियत ठीक नहीं है उसे हॉस्पिटल लेकर जाना है किन्तु वह जा नहीं रहा है उस बुजुर्ग ने कहा कि बेटा मेरा बेटा जिस गणेश की पूजा में मस्त है उशी विघ्नविनाशक गणेश ने अपने माता पिता की परिक्रमा को संसार की परिक्रमा मन कर पूरा किया था और प्रथम पूज्य हुए थे किन्तु उसकी पूजा में लगे मेरे बेटे को अपने माँ बाप का दर्द ही दिखाई नहीं देता काश कि वह भगवान गणेश से इतनी ही शिक्षा पा सकता.
इस बात ने कम से कम मुझे तो अन्दर तक झकझोर दिया और यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि विघ्नहर्ता गणेश अपने उस भक्त को काश इतनी बुद्धि देते कि वह उनकी एक शिक्षा को तो ग्रहण कर पता.
दुखद है कि आज हमारे समाज में बुजुर्गों को वह अपेक्षित सम्मान नहीं मिल पा रहा है जो उन्हें मिलना चाहिए.
आइये उस परम कृपानिधान मंगलकर्ता से इतनी ही प्रार्थना करें कि वह हमें यही वरदान दे कि हमारे समाज में बुजुर्गो से माता पिता से ऊँचा कोई न मन जाए
जय जय श्री गणेश
एक बार फिर गणेसोत्सव आया और अब जाने को है गणेसोत्सव के साथ मेरे मन में मेरे नगर की बहुत सी यादें जुडी है नगर में एक दो जगह ही गणेश स्थापना हुआ करती थी और पुरे दस दिन नगर में उत्सव का माहौल रहा करता था उस समय हर व्यक्ति अपनी सामर्थ्य के हिसाब से इस हेतु चंदा दिया करता था कालांतर में कई जगहों पर गणेश स्थापना की जाने लगी और धीरे धीरे नगर में उत्सव का वह माहौल समाप्त हो गया गणेश स्थापना लगभग रश्म अदायगी होने लगी.
इस साल कल ही जब एक जगह मै गणेश पूजन के समय पहुँच गया तब पूजन के बाद एक बुजुर्ग ने चर्चा में एक ऐसा सवाल उठा दिया कि वहां उपस्थित हममें से कुछ लोग उस बात पर चिंतन के लिए मजबूर हो गए.
हुआ यूँ कि उन बुजुर्ग का कहना था कि वे अपने बेटे को घर लेजाने आए हैं जो यहाँ पूजा में लगा हुआ है एवं घर पर उसकी माता की तबियत ठीक नहीं है उसे हॉस्पिटल लेकर जाना है किन्तु वह जा नहीं रहा है उस बुजुर्ग ने कहा कि बेटा मेरा बेटा जिस गणेश की पूजा में मस्त है उशी विघ्नविनाशक गणेश ने अपने माता पिता की परिक्रमा को संसार की परिक्रमा मन कर पूरा किया था और प्रथम पूज्य हुए थे किन्तु उसकी पूजा में लगे मेरे बेटे को अपने माँ बाप का दर्द ही दिखाई नहीं देता काश कि वह भगवान गणेश से इतनी ही शिक्षा पा सकता.
इस बात ने कम से कम मुझे तो अन्दर तक झकझोर दिया और यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि विघ्नहर्ता गणेश अपने उस भक्त को काश इतनी बुद्धि देते कि वह उनकी एक शिक्षा को तो ग्रहण कर पता.
दुखद है कि आज हमारे समाज में बुजुर्गों को वह अपेक्षित सम्मान नहीं मिल पा रहा है जो उन्हें मिलना चाहिए.
आइये उस परम कृपानिधान मंगलकर्ता से इतनी ही प्रार्थना करें कि वह हमें यही वरदान दे कि हमारे समाज में बुजुर्गो से माता पिता से ऊँचा कोई न मन जाए
जय जय श्री गणेश
हरि इच्छा बलीयसि.
जवाब देंहटाएंबप्पा से सुंदर प्रार्थना की है..... सार्थक आव्हान लिए पोस्ट .....
जवाब देंहटाएंअच्छी सीख...काश!! लोग समझ पायें...
जवाब देंहटाएंमानव मन की गति और विकास विचित्र है .पिता पुत्र प्रकरण में गाँधी जी और हरिलाल का दुखद प्रसंग सब से आगे है .हरिलाल प्रेरित नहीं हो सके. भाई साहब .दूसरे लोग क्या से क्या बन गए .जबरन प्रेरित नहीं किया जा सकता किसी को भी .
जवाब देंहटाएंगणेशजी का चरित्र अनुकरणीय है।
जवाब देंहटाएंखंडेलिया जी ,
जवाब देंहटाएंप्रेरक प्रसंगों / सच्चे मूल्यों को जीवन में उतारने की तुलना में हमारा मन प्रदर्शनप्रियता में रम जाये तो ऐसे ही दृष्टांत देखने को मिलेंगे !
फ़र्क ये है कि विघ्नहर्ता गणपति ने क्या कहा और मैंने क्या सुना ?उन्होंने ने क्या दिखाया और मैंने क्या देखा ?
आपकी प्रविष्टि अत्यंत चिंतनपरक है सो आपका बहुत बहुत आभार !