रविवार, 4 जुलाई 2010

मनुष्य का यदि अपने आप पर वश चलता तो निश्चित ही बहुत से लोग शायद जीवन में एक बार फिर से बच्चा बनना चाहते कितना सुखद और निरापद है आदमी का बिना किसी चिंता के जिन्दा रहना , आज की इस आप धापी की जिंदगी में यदि कोई कहे की उसे किसी प्रकार की चिंता नहीं है तो निश्चित ही वह झूठ बोल रहा है मुझे याद आती है मेरे एक डॉक्टर मित्र की वे मुझे सदा ही यह समझाया करते थे की चिंता से हमेशा दूर रहो लेकिन जब भी मेरा स्वास्थ्य बिगड़ता था तो बोला करते थे कि यार मैं यही सोचकर परेशां हूँ कि आखिर तेरा स्वास्थ्य कमजोर क्यों रहता है मुझे तुम्हारी चिंता रहती है और रात को मैं सो नहीं पता हूँ , अब इसे क्या कहा जाना चाहिए ? निश्चित ही हम सब किशी न किसी प्रकार कि चिंता में हैं शायद यह आज कि आपाधापी भरी जिंदगी का अभिशाप ही है कि हम चैन से शायद खाना भी नहीं खा पाते , हम में से हर कोई छटपटा रहा है कि किसी प्रकार इस स्थिति से बाहर आकर दो पल ही सही चैन कि साँस ले हर कोई इस बात के लिए फिक्र मंद है कि किसी प्रकार जीवन के कुछ ही छन उसे ऐसे मिले कि उसे लगे कि उसने जीवन को जी लिया है लेकिन दुर्भाग्य कि ऐसा हो नहीं पा रहा है हम सभी अपनी अपनी मजबूरियों के साथ जी रहे हैं फिर चाहे हमारी विवशता आर्थिक हो ,सामाजिक हो , या फिर और किसी प्रकार की। कास की कोई मददगार आये और फिर से हम सभी को बच्चा बना दे जनाब मुन्नवर राणा का एक शेर याद आ जाता है की " जी करता है की मैं फरिस्ता हो जाऊ , माँ से इस कदर लिपट जाऊं की बच्चा हो जाऊं "