सोमवार, 26 मार्च 2012


ये क्या माँगा तुने ऐ फरिस्ते

कल मेरे घर
आया एक नन्हा सा मेहमान
मानो हो कोई देवदूत
यह कहता मुझसे कि
ऐ मेरे बुजुर्ग आपसे
बस इतनी ही है विनती
कि हो सके तो मेरे लिए
इंतजाम करो
कुछ ताजी सी हवा का
कुछ अपनापन लिए हुए रिश्तों का
कुछ अच्छे से सच्चे से ( दिखनेवाला ही सही )
समाज का ,
सोचता हूँ मैं
कि ये क्या मांग लिया
मेरे कुल के नवजात ने,
इससे तो अच्छा होता
गर मांगी होती
मेरी सारी दौलत ,
मेरा सारा प्यार
या फिर मेरा पूरा संसार
मन मरकर ही सही दे तो पता उसे मैं
पर अब क्या कहूँ तुझसे
माफ़ करना नन्हे फरिस्ते
नहीं पूरी कर सकूँगा शायद
मैं तेरी ये छोटी (?) सी चाहत
हो सके तो कुछ और मांग
या फिर मुझे मुह छुपाने
का मौका तो दे दे ऐ मेरे अपने

रविवार, 4 मार्च 2012

ऐ पुष्प
ऐ लाल पुष्प देखता हूँ जब भी
तेरे खुबसूरत रंग
सोचता हूँ कहाँ गयी वो तेरी
खुशबु जो रची बसी थी मेरे
नथुनों में तेरे रंगों के साथ
मै बात कर रहा हूँ तब की
जब बना करता था तू
मेरा साथी अपने से
अपने खुबसूरत रंगों के साथ
जीवन हुआ करता था रंगीन
त्यौहारों के अवसर पर
तब तू और हम एक दूसरे के
बन जाते थे पूरक
पर आज तो लगता है
ऐसा मानो तेरे ये लाल लाल
फूल मानो दे रहें हो गवाही
इस बात की कि लहू का रंग
होता है लाल ही
फिर चाहे वो किसी का जीवन
बचाने के कम आये या फिर
कुछ सिरफिरों द्वारा
सड़कों पर बहाया जाये
सच कहता हूँ डर सा लगता
है देखकर लाल रंग ही
कि न जाने कब किसी
मेरे अपने का खून भी
मुझे दिख जाये किसी सड़क
पर इसी लाल रंग में