शुक्रवार, 30 दिसंबर 2011

स्वागत नव वर्ष तेरा
फिर आया
नया वर्ष धोने को कलुष पुराना
फिर आया
नया वर्ष देने को एक नया जमाना
हर तरफ
नयी आशाओं का हो संचार
हर तरफ
छाये नयी बहार
हर जगह हो खुशियों की बौछार
फिर से एक बार
जीवंत हम सभी को यह नववर्ष कर जाये
फिर नए सपने नयी रह दिखाए
आइये मिलकर तलाशें
नयी दिशाएं नयी संभावनाएं
वर्ष २०१२ के आगमन की
हार्दिक शुभकामनयें
ईश्वर खंदेलिया एवं परिवार

गुरुवार, 22 दिसंबर 2011

नव वर्ष तुझसे आने के पहले एक निवेदन
आओ नव वर्ष रौशनी दिखा जाओ
वर्षों पूर्व नए साल के अवसर पर आये एक बधाई पत्र की कुछ लाइनें आज फिर याद हो आयी वे थी
नया वर्ष

नई रौशनी

नई आशाएं नई दिशाएं नई संभावनाएं

आइये मिलकर इन्हें सवारें सजाएँ

इन लाइनों पर ध्यान अचानक ही चला गया सोचता हूँ की इन पंक्तियों के रचियेता ने क्या कभी ये सोचा होगा कि एक समय ऐसा भी आएगा जब न तो नई रोशनी ही बचेगी न नई दिशाएं दिखाई देंगी हर तरफ नई संभावनाओं की बातें तो होंगी किन्तु उन संभावनाओ के फलीभूत होने की आशा लगभग नगण्य ही होगी तब शायद उन्होंने सोचा ही नहीं होगा की हमारी आने वाली पीढ़ी को यह दौर भी देखना पड़ेगा जिसे वह आज देख रही है। हर वर्ष की ही तरह नया वर्ष आने को है दरवाजे पर दस्तक दे ही तो रहा है बस उसे भी इंतजार है तो सिर्फ घडी की सुइयों के मिलाने का कि कब ३१ तारीख को रात दोनों सुइयां एकाकार हो जाये और मिलकर उसके आने की घोषणा कर दें होगा भी यही किन्तु एक यक्ष प्रश्न मेरे अन्तश को बार बार सालता है कि क्या आज की स्थिति में भी हम इस लायक है कि नए साल का पुरे जोश से स्वागत कर सकें पता नहीं यह नया वर्ष भी हम सब के जीवन में जाने से पहले कितने अनुत्तरित प्रश्न छोड़ जाये जिनका जवाब हम कभी नहीं खोज सकें।सोचता हूँ कि सबसे बड़ा प्रश्न तो यही है कि क्या हमारी आनेवाली पीढ़ी को सचमुच हम कुछ देकर जा पाएंगे कोई ऐसी चीज जिस पर वह गर्व कर सके शायद नहीं ही मेरे एक मित्र का कहना है कि चाहे जो भी हो समय की सुइयां तो नहीं ही रुकेंगी हाँ यह अलग बात है कि अच्छे समय के इन्तेजार में हममें से कुछ की धडकनें रुक जाएँ.मेरे अग्रज भाई राहुल सिंह जी akaltara.blogspot.comहमेशा ही कहा करतें है कि आशा कभी नहीं छोडनी चाहिए सच भी तो है कि जिस दिन आशाओं का धागा टुटा उस दिन हम रह ही कहाँ जायेंगे किन्तु मन है कि मानता ही नहीं लाख न सोचने पर भी आज की हमारी परिस्थिति हमें वर्तमान दशाओं एवं दिशाओं पर सोचने को तो मजबूर कर ही देती है परम श्रधेय बाल कवि बैरागी जी से गत वर्ष प्राप्त सुभकामना सन्देश को यंहा उल्लेखित करने का लोभ संवरण नहीं कर पा रहा हूँ जो निम्न है

आइये इस नए साल पर कम से कम यह तो आशा करें कि नया साल हमें इतनी तो मोहलत दे कि जीविका के पर भी हम कुछ तो और भी सोच सकें अपने समाज के लिए अपने देश के लिए अपने परिवेश के लिए और ऐसा होगा भी इन्ही आशाओं केसाथ

ऐ नए वर्ष स्वागत है तेरा

बिखरा जा फिर से नया सवेरा

भर दे हम सब में एक नया उत्साह

अपारताकि तेरा स्वागत करने को रहें

हम हर बार कुमकुम रोली लेकर तैयार

कुछ अपने लिए कुछ परिवेश के लिए

कुछ देश के लिए सोचें आँखों में

उन्नती और प्रगती के सपने
एक बार फिर

सजाएँनयी उमीदों को फिर सहेजे

तलाशें नयी संभावनाएं

नववर्ष की शुभकामनाये ही शुभकामनायें


मंगलवार, 6 दिसंबर 2011

हे प्रभु मेरी कामना बनी रहे

वो जिसे समझा गया था रहनुमा
क्या निकला पता नहीं
हाँ इतना जनता हूँ कि
मेरे सारे सपने टूट गए
बिखर कर राह गयी
सारी की सारी उम्मीदें
सोचता हूँ क्या गलती थी मेरी
सिवाय इसके कि मैंने विश्वाश
किया था रिश्तों पर
नभाना चाहा था अपनी
परंपरा को ,
किन्तु खंडित हो गया मेरा
विश्वाश चढ़ गया सूली पर
आजके भौतिकतावादी जीवन की
किन्तु सुबह जब देखा सूरज को तो
लगा नहीं अभी भी नहीं टूटी है
रिश्तों की डोर
क्योंकि आज भी सूरज लेकर
आया है एक नई रोशनी
एक नया विश्वाश
और एक नयी आश कि
जब तक दुनिया है मेरे वतन में
रिश्तों की डोर टूट नहीं सकती
कभी भी कंही भी