माँ बाप सम कौन नियंता
रविवार, 21 नवंबर 2010
माँ बाप सम कौन जहाँ में
गुरुवार, 4 नवंबर 2010
दीपावली आखिर कहाँ खड़े है हम
दीपावली आखिर कहाँ खड़े है हम
वर्षो पूर्व फिल्म नजराना का स्व मुकेश कि सुना हुआ एक गाना अचानक ही दिवाली के अवसर पर याद आ गया जिसके बोल थे ^^ एक वो भी दिवाली थी, एक ये भी दिवाली है उजड़ा हुआ गुलशन है रोता हुआ माली है** . इस गीत को याद करने का मन सिर्फ इस लिए हुआ कि मेरे छोटे से कस्बे में अब दिवाली मनाने के मायने बदलते हुए नजर आते है जहाँ पहले दिवाली पूजन और नए वर्ष के स्वागत का त्यौहार हुआ करता था वहीँ अब इसके स्वरुप में आ रहा परिवर्तन यह सोचने पर मजबूर कर देता है कि क्या हम अपनी संस्कृति को भूल नहीं रहें है.?पहले दीपावली के दिन का इंतजार रहता था की हमें नए नए कपडे पहनने के लिए मिलेंगें फाटकों के साथ मस्ती करने का मौका मिलेगा पूजन का इन्तेजार रहता था कि कब पूजा समाप्त हों और हमें फटाके फोड़ने का अवसर मिले सामान्यतह दीपावली के दुसरे दिन या उसी दिन पूजन के बाद अपने से बड़ों का आशीर्वाद लेने को मन बेताब सा रहता था छोटे छोटे दीयों से होने वाली रोशनी मन को मोह लिया करती थी हम में से बहुत से लोग ऐसे रहे होंगें जिन्होंने अपने से बड़ों का आशीर्वाद बिना यह सोचे लिया होगा कि वह कौन है? आइये अब आज कि स्थितियों पर विचार करने कि जहमत उठायें गत वर्ष से पूर्व के वर्ष मेरे नगर में दीपावली के दिन लोगों ने होली के नज़ारे का दीदार किया बहुत ही तेज गति से मोटरसाइकिल चलते युवाओं का झुण्ड बिना इस बात कि परवाह किये कि उनकी तेज गति किसी को तकलीफ पहुंचा सकती है या फिर वे स्वयं भी किसी दुर्घटना का शिकार हों सकते हैं सडको पर विचरते देखे गए न सिर्फ विचरते वरन सभ्य समाज कि बच्चियों पर छीटाकशी करते हुए भी किन्तु सभी कुछ सहन करना शायद नियति थी क्योंकि शिकायत कि भी जाती तो आखिर किससे?
पहले हम फाटकों का इस्तेमाल किया करते थे अपनी ख़ुशी का इजहार करने के लिए कालांतर में कुछ ऐसे फटाके इजाद हों गए और बनने लगे जो न सिर्फ लोगों को डराने का माध्यम बन गए वरन उन्हें नुकसान पहुचने का भी साधन बने. शासकीय तौर पर तो इन पर प्रतिबन्ध लगा हुआ है किन्तु हम और आप हर साल दिवाली पर इनका बेख़ौफ़ उपयोग होते देखते रहतें हैं और शासन में बैठे हुए वे लोग जिन पर इनका प्रयोग रोकने कि जिम्मेदारी है वे भी आराम से इनका उपयोग होते देखते हुए अपनी ड्यूटी पूरी कर लेते हैं न्यायालयों के आदेश के बाद भी नियत समय के बाद भी इनका उपयोग पूरी तन्मयता से होता रहता है. मुझे मेरे नगर कि एक घटना याद आती है हुआ कुछ यूँ था कि किसी व्यक्ति ने कुछ मनचले लड़कों को अपने घर के सामने आतिशबाजी करने से रोकने का प्रयास किया चूँकि उस जगह कुछ महिलाएं त्यौहार का आनंद लेने एकत्रित थी किन्तु बजाय इसके कि वे लड़के महिलाओं का सम्मान करते हुए उस सज्जन की बात मानते उन्होंने उनके साथ मारपीट की एवं दुसरे दिन उनके घर के सामने इतने फटाके फोड़े की उनका जीना हराम हों गया.आखिर क्या यही वह दिवाली का स्वरुप रहा होगा जिसके लिए हमारे बुजुर्गों ने इस त्यौहार को मानना प्रारंभ किया होगा? निश्चित ही नहीं किन्तु इसे दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है कि हम सब यह झेलने को मजबूर हैं. खैर यह सब तो शायद हमारी आज की जिंदगी की मज़बूरी है जिसका पूरी कायरता से दीदार करने को हम तैयार नजर आते हैं
क्या हमें उम्मीद करनी चाहिए कि परिस्थितियां बदलेंगी और सभी कुछ ठीक हों जायेगा.शायद ऐसी उम्मीद आशा से आकाश टिका है की तर्ज पर ही की जा सकती है हों सकता है मेरा यह कहना मित्रों को उचित न ही लगे किन्तु मेरा यही मानना है की बहुत ज्यादा उम्मीद करना बेकार ही कहा जा सकता है क्योंकि मैं यह मानता हूँ कि हम निश्चित ही अपनी आने वाली पीढ़ी को वह संस्कार नहीं दे पा रहें है जो शायद हमें देना चाहिए.शायद यह हमारी भीरुता ही है कि हम सब कुछ जन समझ कर भी अपनी परम्पराओं की ओर से मुहं मोड़ रहे हैं सुधि जन इस बात पर काफी बहस कर सकते हैं किन्तु यक्ष प्रश्न फिर वही है कि बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे? और हम सुब फिर से उत्तर देने कि स्थिति में नहीं हैं .
खैर शायद ये सारी बातें कुछ लोगों को बोझिले लगे और वे मुझ पर स्वयं को बड़ा दार्शनिक समझने का इल्जाम भी लगायें किन्तु मेरा मनोभाव कतई ऐसा नहीं है ऐसा लगा कि अपनों से अपनी बातें कहनी चाहिए बस इसीलिए यह सब लिख डाला यदि किसी को बोझिल लगे तो क्षमा चाहूँगा . किन्तु एक बर हम फिर सोचें कि आखिर हम कहाँ खड़े हैं एवं कितने जागरूक है. ये बातें शायद कभी खत्म ही न हों इसीलिए इन्हें यहीं विराम.
हम सभी के लिए दीपावली मंगलमय जीवन का नया एक साल लेकर आये यही प्रभु से प्रार्थना है दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें इन शब्दों के साथ कि
^^दीपों की यह यह माला हम सबके जीवन से तम दूर भगाए **
** है प्रार्थना इतनी प्रभु कि यह दिवाली हमारे अन्दर स्वाभिमान का अलख जगाये**
सदस्यता लें
संदेश (Atom)