बुधवार, 5 अक्तूबर 2011

मेरे मन की बात

फिर आया दशहरा हर साल की तरह
फिर जलएंगे हम कागज के रावण
फिर से एक बार देंगे हम अपनों को
विजयादशमी की बधाई
किन्तु क्या हम सोचेंगे कभी कि
क्या हमने हमारे अन्दर विराजमान
रावण की प्रतिमा को भी है
क्या आग लगाई
कल हमारे भीतर का रावण
फिर करेगा अट्टहास
हमारी सहनशीलता का फिर
उडाएगा उपहास
काश कि हम एक बार ही सही
सोच ही पाते
कि हम अपने अन्दर के रावण
को आखिर क्यां नहीं जलाते
आइये हम अपने अन्दर के रावण
को कुछ ही अंशो में सही
आग लगायें
फिर चलिए हर्षित मन से दशहरा मनाएं
विजयदशमी की
आप सभी को
कोटिशः बधाई