सोमवार, 12 नवंबर 2012


चाहे टूट ही जाएँ सपने तो छोड़ते जाना 
फिर आ गए तुम नववर्ष 
नहीं भरा तुम्हारा मन अब भी 
देखकर दुर्दशा हमारी 
रिश्ते नाते सब स्वाहा हो गए 
इतनी भभक चुकी है 
स्वार्थ की अग्नि हमारी 
क्यों आ जाते हो तुम 
फिर परोसने नए सुहाने सपने 
जिन्हें फिर तोड़ जायेंगे 
रहनुमा ही मेरे अपने 
पर आ ही गए हो तो इतना सुनते जाना  
डर जाता था जब आहाट से मैं 
बीत गया वो जमाना 
अब अपने अधिकारों के लिए लड़ने की 
है हम सब ने ठानी 
भूल चुके है हम सब आदते पुरानी 
इसीलिए कर रहा हूँ स्वागत तुम्हारा 
बड़े मजे से आना 
चाहे टूट ही जाएँ फिर 
मेरी आखों में जीवन के सपने 
फिर एक बार छोड़ जाना 
























2 टिप्‍पणियां:

  1. जीवन-चक्र में बीतता, आता-जाता समय.

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  2. सबने अपनी जिद पकड़ी है,
    हम भी जिद में, तुम भी जिद में,
    मन की डोर वहीं जकड़ी है,
    हम भी जिद में, तुम भी जिद में।

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