मंगलवार, 6 दिसंबर 2011

हे प्रभु मेरी कामना बनी रहे

वो जिसे समझा गया था रहनुमा
क्या निकला पता नहीं
हाँ इतना जनता हूँ कि
मेरे सारे सपने टूट गए
बिखर कर राह गयी
सारी की सारी उम्मीदें
सोचता हूँ क्या गलती थी मेरी
सिवाय इसके कि मैंने विश्वाश
किया था रिश्तों पर
नभाना चाहा था अपनी
परंपरा को ,
किन्तु खंडित हो गया मेरा
विश्वाश चढ़ गया सूली पर
आजके भौतिकतावादी जीवन की
किन्तु सुबह जब देखा सूरज को तो
लगा नहीं अभी भी नहीं टूटी है
रिश्तों की डोर
क्योंकि आज भी सूरज लेकर
आया है एक नई रोशनी
एक नया विश्वाश
और एक नयी आश कि
जब तक दुनिया है मेरे वतन में
रिश्तों की डोर टूट नहीं सकती
कभी भी कंही भी

6 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर विचार ...यह विश्वास बना रहे .....

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  2. रहनुमा खुद को बनाओ मुस्कुराओगे
    दिल में किसी को बसाओ गुनगुनाओगे।
    टूट जाएं सहारे जब अपने साथी के
    खुदी को ढूंढ कर लाओ महक जाओगे।

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  3. आशा बनी रहे ...
    आशा है तो जीवन है ...

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  4. श्री राहुल सिंह से मेल पर प्राप्त प्रतिक्रिया
    कमेंट बाक्‍स टिप्‍पणी स्‍वीकार नहीं कर र‍हा है, सो यहां-
    ''आशा से आकाया टिका है...''

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  5. .रिश्तों की खटास मिठास जीवन को एक नया एहसास ,नया अनुभव देती है .हर इन्सान इस का अनुभव कभी न कभी करता हींहै .अच्छालिखा है .भावों को ,अनुभवों को शव्दों में पिरोते रहो किन्तु निराश मत हो .में तो कब से इनका अनुभव कर रही हूँ तुम्हारी तरह कभी कभी बहुत दुःख भी होता है .फिर लगता है चलो ठीक है भगवानगलत सोचने वालों को सद्बुधी दे

    जो अनुभूत हुआ अंतर में कल्पित भी है सच्चा भी है
    किन्तु रिश्तों में कुछखट्टा भी है कुछ मीठाभी है

    देवकी खान्देलिया

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