गुरुवार, 23 फ़रवरी 2012

हे वसंत इतना तो सिखा जाओ
ये क्या देखा मैंने ऋतुराज वसंत
तुम्हारा स्वागत इस प्रकार ,
मानो आया हो कोई अनचाहा,
अपने द्वार ,
और अपने ही स्वागत के लिए
बुलाना पड़ा अपनों को ही
क्योंकि भूल गए थे सभी
अपने तुम्हारे आने की आह्ट
अपने जीवन की आपाधापी में
हो सके तो इस बार
इतना तो सिखा दो हमें
कि हमारे यहाँ होता है
अपनों का ही नहीं
परायों का भी सत्कार

6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुतों को शायद खबर ही नहीं होगी और वसंत विदा हो जाएगा.

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  2. साल में एक बार आता है, परिचित है, पराया नहीं..

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  3. इतना तो सिखा दो हमें
    कि हमारे यहाँ होता है
    अपनों का ही नहीं
    परायों का भी सत्कार इसलिए तो हम मनाते है हर त्यौहार...

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  4. वाह जब वसंत को ही मा स्साब बना लिया आपने फ़िर तो जिंदगी के फ़लसफ़े खूब समझाएंगी ये ऋतुएं । खूबसूरत भाव

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