हे वसंत इतना तो सिखा जाओ
ये क्या देखा मैंने ऋतुराज वसंत
तुम्हारा स्वागत इस प्रकार ,
मानो आया हो कोई अनचाहा,
अपने द्वार ,
और अपने ही स्वागत के लिए
बुलाना पड़ा अपनों को ही
क्योंकि भूल गए थे सभी
अपने तुम्हारे आने की आह्ट
अपने जीवन की आपाधापी में
हो सके तो इस बार
इतना तो सिखा दो हमें
कि हमारे यहाँ होता है
अपनों का ही नहीं
परायों का भी सत्कार
बहुतों को शायद खबर ही नहीं होगी और वसंत विदा हो जाएगा.
जवाब देंहटाएंसाल में एक बार आता है, परिचित है, पराया नहीं..
जवाब देंहटाएंइतना तो सिखा दो हमें
जवाब देंहटाएंकि हमारे यहाँ होता है
अपनों का ही नहीं
परायों का भी सत्कार इसलिए तो हम मनाते है हर त्यौहार...
बहुत सुंदर बात कही.....
जवाब देंहटाएंवाह जब वसंत को ही मा स्साब बना लिया आपने फ़िर तो जिंदगी के फ़लसफ़े खूब समझाएंगी ये ऋतुएं । खूबसूरत भाव
जवाब देंहटाएंसही है यह फलसफा भी..
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